आप सभी का इस ब्लॉग पे स्वागत है, ये ब्लॉग सफलता के बारे में है। आज मै आपको एक कहानी बताने जारहा हु, जो भगवान बुद्ध के बारे में है। कहानी का नाम है मन से बड़ा कुछ नहीं ।
मन से बड़ा कुछ नहीं
(चक्षुपाल की कथा )
एक दिन भिक्षु चक्षुपाल जेतवन विहार में बुद्ध को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आया। रात्रि में वह ध्यान साधना में लीन टहलता रहा। उसके पैरो के निचे कई कीड़े-मकोड़े दबकर मर गये। सुबह में कुछ अन्य भिक्षुगण वहा आये और उन्होंने उन कीड़े-मकोड़ो को मरा हुआ पाया। उन्होंने बुद्ध को सूचित किया कि किस प्रकार चक्षुपाल ने रात्रि बेला में पाप कर्म किया था। बुद्ध ने उन भिक्षुओ से पूछा कि क्या उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ो को मारते हुए देखा था। जब उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया तब बुद्ध ने उनसे कहा कि जैसे उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ो को मारते हुए नहीं देखा था वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन जीवित कीड़ो को नहीं देखा था। "इसके अतिरिक्त चक्षुपाल ने अर्हत्व प्याप्त कर लिया है। अतः उसके मन में हिंसा का भाव नहीं हो सकता था। इस प्रकार वह निर्दोष है। " भिक्षुओ द्वारा पूछे जाने पर कि अर्हत होने के बावजूद चक्षुपाल अँधा क्यों था, बुद्ध ने यह कथा सुनाई :
अपने एक पूर्व जन्म में चक्षुपाल आखो का चिकित्सक था । एक बार उसने जान बूझकर एक महिला रोगी को अँधा कर दिया था । उस महिला ने वचन दिया था कि अगर उसकी आखे ठीक हो जाएगी तो वह अपने बच्चो के साथ दासी हो जाएगी और जीवन पर्यन्त उसकी गुलामी करेगी । उसकी आखो का इलाज चलता रहा और आखे पूरणतः ठीक हो गई । पर इस भय से कि उसे जीवन पर्यन्त गुलामी करनी होगी, उसने चिकित्सक से झूट बोल दिया कि उसकी आखे ठीक नहीं हो रही थी । चिकित्सक को मालूम था कि वह झूठ बोल रही थी । अतः उसने एक ऐसी दवा दे दी जिससे उस स्त्री की आँखो की रोशनी चली गई और वह पूर्णतः अंधी हो गई । अपने एक कुकर्म के कारण चक्षुपाल कही जन्मो में एक अंधे व्यक्ति के रूप में पैदा हुआ था ।
टिप्पणी : हमारे सभी अनुभओं का सृजन विचार से होता है । अगर हम बुरे विचारो से बोलते है या कोई कार्य करते है तो उनसे कष्टदायक परिणाम प्राप्त होता है । हम जहाँ कहीं जाते है बुरे विचारो के कारण बुरे परिणाम ही पाते है । हम अपने दुःखो से तब तक मुक्त नही हो सकते जब तक हम अपने बुरे विचारो से ग्रस्त है ।
मन से बड़ा कुछ नहीं
(चक्षुपाल की कथा )
एक दिन भिक्षु चक्षुपाल जेतवन विहार में बुद्ध को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आया। रात्रि में वह ध्यान साधना में लीन टहलता रहा। उसके पैरो के निचे कई कीड़े-मकोड़े दबकर मर गये। सुबह में कुछ अन्य भिक्षुगण वहा आये और उन्होंने उन कीड़े-मकोड़ो को मरा हुआ पाया। उन्होंने बुद्ध को सूचित किया कि किस प्रकार चक्षुपाल ने रात्रि बेला में पाप कर्म किया था। बुद्ध ने उन भिक्षुओ से पूछा कि क्या उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ो को मारते हुए देखा था। जब उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया तब बुद्ध ने उनसे कहा कि जैसे उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ो को मारते हुए नहीं देखा था वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन जीवित कीड़ो को नहीं देखा था। "इसके अतिरिक्त चक्षुपाल ने अर्हत्व प्याप्त कर लिया है। अतः उसके मन में हिंसा का भाव नहीं हो सकता था। इस प्रकार वह निर्दोष है। " भिक्षुओ द्वारा पूछे जाने पर कि अर्हत होने के बावजूद चक्षुपाल अँधा क्यों था, बुद्ध ने यह कथा सुनाई :
अपने एक पूर्व जन्म में चक्षुपाल आखो का चिकित्सक था । एक बार उसने जान बूझकर एक महिला रोगी को अँधा कर दिया था । उस महिला ने वचन दिया था कि अगर उसकी आखे ठीक हो जाएगी तो वह अपने बच्चो के साथ दासी हो जाएगी और जीवन पर्यन्त उसकी गुलामी करेगी । उसकी आखो का इलाज चलता रहा और आखे पूरणतः ठीक हो गई । पर इस भय से कि उसे जीवन पर्यन्त गुलामी करनी होगी, उसने चिकित्सक से झूट बोल दिया कि उसकी आखे ठीक नहीं हो रही थी । चिकित्सक को मालूम था कि वह झूठ बोल रही थी । अतः उसने एक ऐसी दवा दे दी जिससे उस स्त्री की आँखो की रोशनी चली गई और वह पूर्णतः अंधी हो गई । अपने एक कुकर्म के कारण चक्षुपाल कही जन्मो में एक अंधे व्यक्ति के रूप में पैदा हुआ था ।
टिप्पणी : हमारे सभी अनुभओं का सृजन विचार से होता है । अगर हम बुरे विचारो से बोलते है या कोई कार्य करते है तो उनसे कष्टदायक परिणाम प्राप्त होता है । हम जहाँ कहीं जाते है बुरे विचारो के कारण बुरे परिणाम ही पाते है । हम अपने दुःखो से तब तक मुक्त नही हो सकते जब तक हम अपने बुरे विचारो से ग्रस्त है ।